Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इन्द्रियों के विषयों में काम से कभी न फंसे और विषयों की अत्यन्त प्रसक्ति अर्थात् प्रसंग को मन से अच्छे प्रकार दूर करता रहे ।
(सं० वि० गृहाश्रम वि०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
६-गृहस्थ इन्द्रियों के विषयों में काम से वशीभूत होकर कभी न फंसे। और इन विषयों की अतिप्रसक्ति (अधिक फंसावट) मन से सर्वथा दूर कर दे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
कामतः अर्थात् भोग की इच्छा से इन्द्रियों के किसी विषय में न फँसें। (अति प्रसक्तिं च एतेषां) इन इन्द्रियों की अत्यन्त लोलुपता को (मनसा) विचारपूर्वक तथा दृढ़तापूर्वक (सनिवर्तयेत्) दूर करें। विषयों में न फंसने दें।