Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मनुष्यों के एक वर्ष के तुल्य देवताओं का एक रात्रि-दिन होता है। जब तक *सूर्य उत्तरायण रहते हैं तब तक दिन रहता है और जब तब सूर्य **दक्षिणायन रहते हैं तब रात्रि होती है।
टिप्पणी :
*माघ की संक्रांति से सावन की संक्रांति तक उत्तरायण होता है।** सावन की संक्रांति से माघ की संक्रांति तक दक्षिणायन होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(वर्षम्) मनुष्यों का एक वर्ष (दैवे रात्र्यहनी) देवताओं के एक दिन - रात होते हैं (तयोः पुनः प्रविभागः) उनका भी फिर विभाग है (तत्र उदगयनम् अहः) उनमें ‘उत्तरायण’ देवों का दिन है, और (दक्षिणायनम् रात्रिः स्यात्) ‘दक्षिणा-यन’ देवों की रात है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
मानुष वर्ष दैविक रातदिन है। पुनः उन दैविक दिनरातों का विभाग इस प्रकार है कि मानुष वर्ष में उत्तरायण काल दैविक दिन है और दक्षिणयान काल दैविक रात है।