Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गीत वाद्य (गाना बजाना), अयोग्य तथा अनाधिकारी को यज्ञ कराना, इन कर्मों द्वारा कालक्षेप न करें तथा जो मनुष्य पतित (अर्थात् अपने कर्ण से धर्म भ्रष्ट) हो गया है, उससे धनादि वस्तु ग्रहण न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गृहस्थ कभी किसी दुष्ट के प्रसंग से द्रव्यसंचय न करे न विरूद्ध कर्म से न विद्यमान पदार्थ होते हुए उनको गुप्त रखके अथवा दूसरे से छल करके और चाहे कितना ही दुःख पड़े तदपि अधर्म से द्रव्यसंचय कभी न करे ।
(सं० वि० गृहाश्रम वि०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
५-गृहस्थ न किसी दुष्ट के प्रसंग से, न विरुद्ध कर्म से, न पदार्थों के विद्यमान होते हुए लोभ या तृष्णावश, और न कष्टावस्था में भी जहां तहां से अधर्मपूर्वक, कभी द्रव्य का संचय करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(न ईहेत) न कमावे (अर्थान्) धनों को (प्रसंगेन) गाना बजाना करके, (न विरुद्धेन कर्मणा) न धर्म विरुद्ध काम करके। (न विद्यमानेषु अर्थेषु) यदि घर में धन हो तो भी धन न कमावें, (न आत्र्यां अपि) धन न होने पर भी (यतः ततः) इधर उधर से अर्थात् दूषित साधनों से न कमावें।