Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ब्राह्मणादि द्विज वेदोक्त अपने कर्म को आलस्य छोड़ के नित्य किया करें उसको अपने सामथ्र्य के अनुसार करते हुए मुक्ति पर्यन्त पदार्थों को प्राप्त होते हैं ।
(सं० वि० गृहाश्रम वि०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
अतः, गृहस्थ वेदोक्त अपने कर्म को, आलस्य छोड़कर, नित्य किया करे। क्योंकि अपने सामर्थ्य के अनुसार उसको करता हुआ ही परमगति मुक्ति तक को पा लेता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(वेद + उदितं स्वकं कर्म) वेद में बताये हुए अपने कर्म को (नित्यं कुर्यात् अतीन्द्रतः) बिना आलस्य के नित्य करें। (तत् हि कुवन् यथाशक्ति) उसी को यथाशक्ति करें। (प्राप्नोति परमां गतिम्) परम गति को प्राप्त होता है।