Manu Smriti
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अतोऽन्यतमया वृत्त्या जीवंस्तु स्नातको द्विजः ।स्वर्गायुष्ययशस्यानि व्रताणीमानि धारयेत् ।।4/13

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कथित वृत्तियों में से किसी एक द्वारा कालयापन करें। वेदाध्ययन (सम्पूर्ण समाप्त करने पश्चात् इन्द्रियों को वश कर समावत्र्तन करें। स्वर्ग, आयु तथा यश के हेतु लाभदायक व्रत जो आगे कहेंगे उसको करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इसलिए स्नातक गृहस्थी द्विज अपेक्षाकृत किसी श्रेष्ठ आजीविका से जीवन निर्वाह करते हुए सुख, आयु और यश देने वाले इन व्रतों को धारण करे -।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अतः) इसलिये (अन्यतमया वृत्त्या) किसी एक वृत्ति या जीविका के द्वारा (जीवन तु) जीता हुआ (स्नातकः द्विजः) द्विज स्नातक (स्वर्ग + आयुष्य + यशस्यानि व्रतानि इमानि) इन स्वर्ग, आयु और यश को देने वाले व्रतों को (धारयेत्) करें।
 
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