सुख चाहने वाला व्यक्ति अत्यन्त संतोष को धारण करके संयत - अधिक धन के संग्रह की इच्छा न रखने वाला बने क्यों कि संतोष सुख का आधार है उससे उल्टा अर्थात् असंतोष दुःख का आधार है ।
(संतोषं परं आस्थाय) पूरा संतोष करके (सुखार्थी संयतः भवेत्) सुख चाहने वाला और संयम में रहने वाला होवे। संतोष सुख का मूल है और उसका उल्टा असन्तोष दुःख का मूल है।