Manu Smriti
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संतोषं परं आस्थाय सुखार्थी संयतो भवेत् ।संतोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः ।।4/12

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन्द्रियों के वश करने के हेतु सदैव मन में सन्तोष धारण करें क्योंकि संसार में सुख का मूल सन्तोष और दुख का मूल असन्तोष वा अधैय्र्य है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सुख चाहने वाला व्यक्ति अत्यन्त संतोष को धारण करके संयत - अधिक धन के संग्रह की इच्छा न रखने वाला बने क्यों कि संतोष सुख का आधार है उससे उल्टा अर्थात् असंतोष दुःख का आधार है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
४-सुखार्थी उत्कृष्ट सन्तोष को धारण करके मन को वश में रखे। क्योंकि संतोष ही सुख का मूल है और इस से विपरीत असंतोष दुःख का मूल है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(संतोषं परं आस्थाय) पूरा संतोष करके (सुखार्थी संयतः भवेत्) सुख चाहने वाला और संयम में रहने वाला होवे। संतोष सुख का मूल है और उसका उल्टा असन्तोष दुःख का मूल है।
 
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