Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
असत्य भाषण, मनोरंजन तथा निन्दा व दस्यु द्वारा जीविका ग्रहण करना उचित नहीं। ब्राह्मण को छल तथा असत्यभाषण द्वारा आजीविका परित्याग कर शुभ तथा सृष्टयुकार द्वारा जीविका प्राप्त करनी चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गृहस्थ जीविका के लिये भी कभी शास्त्रविरूद्ध लोकाचार का वत्र्ताव न वत्र्ते, किन्तु जिसमें किसी प्रकार की कुटिलता, मूर्खता, मिथ्यापन वां अधर्म न हो उस वेदोक्त कर्मसम्बन्धी जीविका को करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
और, जीविका के लिए कभी शास्त्रविरुद्ध लोकाचार का वर्ताव न वर्तें। अपितु, कुटिलता तथा दम्भ-छल-कपट रहित वेदोक्तकर्मसम्बन्धी शुद्ध जीविका को करे।१
टिप्पणी :
१. स्वामी जी ने ब्राह्मण का अर्थ ब्रह्म (वेद) प्रतिपादित होने से ‘वेदोक्तकर्मसम्बन्धी’ ऐसा किया है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जीविका के लिये कभी लोगों को प्रसन्न करके नाटक आदि का पेशा न करें। (अजिह्माम्) पाप रहित, (अशठां) धोखा न देने वाली, (शुद्धां) शुद्ध (जीवेत् ब्राह्मण-जीविकान्) ब्राह्मण के योग्य जीविका को करें।