Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अपनी आयु का प्रथम भाग वेदाध्ययनाथ गुरुकुल में व्यतीत करें। आयु के द्वितीय भाग में तदनुसार कर्म करने के हेतु विवाह कर गृहस्थाश्रम में विचरें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. द्विज - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य पहले आयु के चौथाई भाग तक (कम से कम पच्चीस वर्ष पर्यन्त) गुरू के समीप रहकर अर्थात् गुरूकुल में रहते हुए अध्ययन और ब्रह्मचर्यपालन करके आयु के दूसरे भाग में विवाह करके आयु के दूसरे भाग में विवाह करके घर में निवास करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१-द्विज जीवन का आदिम चौथा भाग गुरुकुल-वास में व्यतीत करके जीवन का दूसरा भाग विवाह करके गृहस्थाश्रम में बितावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(चतुर्थं आयुषः भागम्) आयु के चौथाई भाग में (उषित्वा) रहकर (आद्यं) पहले अर्थात् ब्रह्मचर्य आश्रम में (गुरौ) गुरु के पास (द्विजः) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य (द्वितीय आयुषः भागम्) आयु के दूसरे भाग में (कृतदारः) विवाह करके (गृहे वसेत्) घर में बसे।
अर्थात् आयु के चार भाग हैं। पहले भाग में गुरुकुल में ब्रह्मचर्य आश्रम और दूसरे में पत्नी के साथ गृहस्थ आश्रम।