Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
भृगुजी कहते हैं कि हे ऋषि-वर्गों पंचमहायज्ञ की विधि कही, अब ब्राह्मण की मुख्यवृत्ति (जीविका) को कहते हैं तिसको सुनो।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यह तुम्हें सम्पूर्ण पंच्चयज्ञसम्बन्धी विधान कहा । अब आगे द्विजातियों की मुख्य आजीविका और जीवनचर्या के विधान को सुनो -
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यह तुम्हें समस्त पञ्चयज्ञविधि बतलायी गयी। अब द्विजातियों के मुख्य शीलाचारों को सुनिए१-
टिप्पणी :
१. यह शीलाचार आर्यगृहस्थों का ‘विनय पिटक’ है। इस प्रकरण के लिए भी सं० वि० गृहाश्रम तथा स० स० ४ देखें।