Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
श्राद्ध के पश्चात् जो कुछ भोजन शेष रहे उसे श्राद्धकत्र्ता स्वयं खावे, यह यज्ञ से शेष रहा भोजन पवित्र करने वाला है।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
अतः गृहस्थ को सदा विघसाशी या अमृतभोजी होना चाहिये। भुक्तशेष को विघस और यज्ञशेष को अमृत कहते हैं। अतः, अतिथि आदि सब को भोजन करा चुकने पर अवशिष्ट अन्न को खाने वाला विघसाशी, तथा अतिथियज्ञादि यज्ञों से अवशिष्ट अन्न को खानेवाला अमृतभोजी कहलाता है।