Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मनुष्य और देवताओं के रात्रि दिवस की पहिचान सूय्र्य के कारण से होती है। सब जीवधारियों के विश्राम के हेतु रात्रि और काय्र्य के हेतु दिवस नियत हुआ।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(सूय्र्यः) सूर्य (मानुष - दैविके) मानुष - मनुष्यों के और दैवी - देवताओं के (अहोरात्रे) दिन - रातों का (विभजते) विभाग करता है, उनमें (भूतानां स्वप्नाय रात्रिः) प्राणियों के सोने के लिए ‘रात’ है और (कर्मणां चेष्टायें अहः) कामों के करने के लिए ‘दिन’ होता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सूर्य मानुष और दैविक दिनरात का विभाग करता है। जिसमें प्राणियों के सोने के लिये रात और कामों के करने के लिए दिन है।