Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्रह्मा ने इस शास्त्र को बनाकर पहले हमको बुद्धि के अनुसार बतलाया। फिर हमने मरीचि आदि ऋषियों को सिखलाया।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
१।५८-६३ तक छः श्लोक निम्न - कारणों से प्रक्षिप्त हैं - ये श्लोक पूर्वापर प्रसंग से विरूद्ध हैं । १।५२-५७ तक श्लोकों में परमात्मा की जाग्रत - सुषुप्ति दशाओं का वर्णन है और १।६४-७३ तक श्लोकों में इन अवस्थाओं की अवधि (दिन - रात - सृष्टि - प्रलय के परिमाण वर्षों का) का वर्णन है । इस प्रकार पूर्वापर का प्रसंग है, उससे विरूद्ध इन बीच के श्लोकों का अप्रासंगिक वर्णन किया गया है । और मनुस्मृति के रचयिता मनु हैं, किन्तु इन श्लोकों में ‘इदं शास्त्रं तु कृत्वाऽसौ’ कहकर ब्रह्मा को मूल रचयिता बताया है । यह ब्रह्मा से सृष्टि रचना मानने वालों ने बाद में प्रसंग को जोड़ने का ही दुस्साहस किया है । जब ऋषियों ने ।१-४ श्लोकों में मनु से धर्म के लिये प्रार्थना की है, तो ब्रह्मा कहाँ से आ गये ? यदि ब्रह्मा से यह ज्ञान मनु को प्राप्त होता तो मनु अवश्य ही इसकी चर्चा कहीं तो करते ? अतः इस शास्त्र के मूल - प्रवक्ता मनु ही हैं । और इन श्लोकों में मनुस्मृति को ‘शास्त्र’ नाम से लिखा है, यह व्यवहार भी यथार्थ में अर्वाचीन है । मनुस्मृति तो प्रवचन रूप ही थी, जैसे - वक्तुमर्हसि (१।२) श्रूयताम् (१।४२) तं निबोधत (६।१२०) विधानं श्रूयताम् (३।२८६) इत्यादि श्लोकों से स्पष्ट है । अतः इसका ‘शास्त्र’ नाम बाद में प्रचलित हुआ, जब इसको संकलन करके ग्रन्थरूप में निबद्ध कर दिया गया । और १।६३ श्लोक में मनुओं द्वारा चराचर जगत् की उत्पत्ति का कथन भी पूर्वापर से विरूद्ध है । जब पीछे अव्यक्त परमात्मा से जगदुत्पत्ति कही जा चुकी है, तो यह पुनरूक्ति क्यों ? और क्या कोई शरीरधारी जीव चराचर जगत् की रचना कर सकता है ? यह सब शास्त्रों से विरूद्ध मान्यता है । और मनु सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न हुए, वे अपने से बाद में होने वाले स्वायम्भुवादि सात मनुओं का वर्णन कैसे कर सकते हैं ?