Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इसी प्रकार ब्रह्माजी जाग्रत् और निद्रित दशा में होने से सब चर और अचर जीवधारियों को बार बार उत्पन्न करते और नाश करते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(सः अव्ययः) वह अविनाशी परमात्मा (एवम्) इस प्रकार (५१-५४ के अनुसार) (जाग्रत् - स्वप्नाभ्याम्) जागने और सोने की अवस्थाओं के द्वारा (इदं सर्वं चर - अचरम्) इस समस्त जड़ चेतन जगत् को क्रमशः (अजस्त्रं संज्जीवयति) प्रलयकाल तक निरन्तर जिलाता है (च) और फिर (प्रमापयति) मारता है अर्थात् कारण में लीन करता है ।