Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जब तक जीवात्मा जाग्रत रहता है, तब तक यह जगत् दृष्ठिगोचर होता है और जब वह शान्त पुरुष अर्थात् जीवात्मा निद्रा के वशीभूत हो जाता है तब प्रलय हो जाता है।
टिप्पणी :
वह नित्य प्रलय कहलाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
(यदा) जब (सः देवः) वह परमात्मा (१।६ में वर्णित) (जागर्ति) जागता है अर्थात् सृष्ट्युत्पत्ति के लिए प्रवृत्त होता है (तदा) तब (इदं जगत् चेष्टते) यह समस्त संसार चेष्टायुक्त (प्रकृति से समस्त विकृतियों की उत्पत्ति पुनः प्राणियों का श्वास - प्रश्वास चलना आदि चेष्टाओं से युक्त) होता है, (यदा) और जब (शान्तात्मा) यह शान्त आत्मावाला सभी कार्यों से शान्त होकर (स्वपिति) सोता है अर्थात् सृष्टि - उत्पत्ति, स्थिति से निवृत्त हो जाता है (तदा) तब (सर्वम्) यह समस्त संसार (निमीलति) प्रलय को प्राप्त हो जाता है ।