Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यह सब जगत्-पहिले प्रकृति की दशा में छिपा हुआ था, और इसका कुछ ज्ञान और लक्षण न था और तर्क मालूम हो सकता था-स्वप्न की सी दशा में था।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. (इदम्) यह सब जगत् (तमोभूतम्) सृष्टि के पहले प्रलय में अन्धकार से आवृत्त - आच्छादित था ।................... उस समय (अविज्ञेयम्) न किसी के जानने (अप्रतक्र्यम्) न तर्क में लाने और (अलक्षणम् अप्रज्ञातम्) न प्रसिद्ध चिन्हों से युक्त इन्द्रियों से जानने योग्य था और न होगा । किन्तु वर्तमान में जाना जाता है और प्रसिद्ध चिन्हों से युक्त जानने के योग्य होता और यथावत् उपलब्ध है । (स० प्र० अष्टम स०)
(सर्वतः) सब ओर (प्रसुप्तम् इव) सोया हुआ - सा पड़ा था ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यह सब जगत् सृष्टि के पहले प्रलय काल में अन्धकार (प्रकृति) से आवृत आच्छादित था। उस समय यह न किसी से जानने योग्य, न प्रसिद्ध चिह्नों से युक्त, न तर्क में लाने योग्य और न इन्द्रियों से जानने योग्य था। एवं, यह सर्वत्र गाढ़ निद्रित सा प्रलीन था।१
१. सांख्यदर्शन में ‘तमस्’ प्रकृति के लिए प्रयुक्त है। स० स० ८