Manu Smriti
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तमसा बहुरूपेण वेष्टिताः कर्महेतुना ।अन्तःसंज्ञा भवन्त्येते सुखदुःखसमन्विताः । ।1/49

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इस सब में तमोगुण की अधिकता है, अतएव सुख-दुःख का ज्ञात भीतर ही रहता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
कर्महेतुना) पूर्वजन्मों के कर्मों के कारण (बहुरूपेण तमसा) बहुत प्रकार के तमोगुण से (वेष्टिताः) संयुक्त या घिरे हुए (एते) ये स्थावर जीव (अन्तः - संज्ञाः भवन्ति) आन्तरिक चेतना वाले (जिनके भीतर तो चेतना है किन्तु बाहरी क्रियाओं में प्रकट नहीं होती) होते हैं (सुख - दुःखसमन्विताः) और सुख - दुःख के भावों से युक्त होते हैं ।
 
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