Manu Smriti
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भुक्तवत्स्वथ विप्रेषु स्वेषु भृत्येषु चैव हि ।भुञ्जीयातां ततः पश्चादवशिष्टं तु दम्पती 3/116

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्मण, सम्बन्धी, और भृत्य (सेवक) को भोजन देकर गृहस्वामी को अपनी पत्नी सहित भोजन करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. विद्वान् अतिथियों द्वारा भोजन कर लेने पर और अपने सेवकों आदि के खा लेने पर उसके बाद शेष बचे भोजन को पति - पत्नी खायें ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(भुक्तवत्सु) खा जाने पर (अथ विप्रेषु) ब्राह्मणों के (स्वेषु भृत्येषु च एव हि) और अपने नौकरों के भी (भुंजीयातां ततः पश्चात्) पीछे से खावें (अवशिष्टं) बचे हुए को (तु दम्पती) गृहस्थी और उसकी पत्नी। अर्थात् गृहस्थ स्त्री और पुरुष को चाहिये कि न केवल अतिथि ही किन्तु अपने नौकरों को भी खिलाकर खावें।
 
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