Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
भोजन योग्य जितने पुरुषों को कह आये हैं उन सब को बिना भोजन कराये जो अज्ञानी आप भोजन करता है वह नहीं जानता कि हमारे शरीर को कुत्ते और गिद्ध खायेंगे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
यह (३।११५) श्लोक निम्नलिखित कारणों से प्रक्षिप्त है -
(क) यह श्लोक प्रसंगविरूद्ध है । इससे पूर्वश्लोकों में अतिथि, मित्र, गर्भिणी, रोगी आदि को खिलाने का वर्णन किया है और ३।११६ में कहा है इन सबके खाने पर गृहस्थ पति - पत्नी अवशिष्ट भोजन को खायें । इनके मध्य में इनसे (अतिथि आदि से) पूर्व खाने का दोषपरक अर्थवाद असंगत है । क्यों कि अर्थवाद विधिवाक्य के बाद आना चाहिये । अतः यह श्लोक प्रसंग को भंगकर रहा है ।
(ख) इस श्लोक में कुत्ते, गिद्ध, आदि से खाने की बात भी मनु की मान्यता से विरूद्ध है । मनु ने अन्त्येष्टि क्रिया को मानकर शव के दाह करने की विधि को ही माना है , न कि मरने के बाद जंगल में गेरने पर कुत्ते, गिद्धादि के द्वारा खाने को । मनु ने ५।१६७-१६८श्लोकों में अन्त्येष्टि (दाहक्रिया) का स्पष्ट उल्लेख किया है ।
(ग) अतिथि आदि से पूर्व भोजन करना गृहस्थी के लिये निन्दनीय अवश्य है । और वह भी यदि अतिथि भोजन खाने से पूर्व घर पर आ गया हो । यदि अतिथि भोजन करने के बाद आया हो, तब भी उसका सत्कार करना ही चाहिये । अतः पूर्व भोजन करना भी सापेक्ष निन्दनीय तो है, परन्तु यहाँ अतिशयोक्तिपूर्ण जो वर्णन किया है, यह मनु की शैली नहीं है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अदत्वा तु) और न देकर (यः) जो (एतेभ्यः) इन अतिथि आदि को, (पूर्वं) पहले (भुंक्ते) खाता है (अविचक्षणः) मूर्ख। (सः भुंजानः) वह खाता हुआ (न जानाति) नहीं जानता है, (श्व + गृध्रैः) कुत्तों और गिद्धों द्वारा (जग्धिम्) खाये हुए (आत्मनः) अपने शरीर को।
अर्थात् जो मूर्ख स्वयं खाता है परन्तु अतिथि आदि को नहीं खिलाता वह नहीं जानता कि बिना कत्र्तव्य-पालन किये हुए खाने से जो शरीर बढ़ रहा है उसको तो मरने के पश्चात् कुत्ते और गिद्ध खा जायेंगे। इसलिये धर्म के बिना शरीर बढ़ाना व्यर्थ है।