Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पुत्रवधू (बेटे की स्त्री) विवाहिता पुत्री, छोटा बालक, रोगी, गर्भिणी स्त्री, इन सबको अतिथि-भोजन से प्रथम देना चाहिये, कुछ सोच विचार न करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
नव विवाहिता और अल्पवयस्क कन्याओं को रोगियों को गर्भवती स्त्रियों को इन्हें अतिथियों से पहले ही बिना किसी संदेह के अर्थात् बडे़ - छोटे को पहले - पीछे भोजन कराने का विचार किये बिना खिला दे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
गृहस्थ का कर्तव्य है कि वह नवविवाहिता पुत्रवधुऐं या पुत्रियें, कुमारियें, रोगी लोग, तथा गर्भिणी स्त्रियां, इन सब को बिना किसी विचार के अतिथियों से पूर्व ही भोजन करादे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सुवासिनीः) नववयस्क स्त्रियों को, (कुमारीः च) और बिना ब्याही हुई स्त्रियों को, (रोगिणः) बीमार पुरुष या स्त्रियों को, (गर्भिणी स्त्रियः) और गर्भवती स्त्रियों को (अतिथिभ्यः अग्र एव) अतिथियों से भी पूर्व (एतान् भोजयेत् अविचारयन्) बिना संकोच के भोजन करा देना चाहिये।