Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रीति के कारण मित्रादि प्रियजन गृह पर आये हों तो यथाशक्ति स्त्रियों के भोजन के समय उनको भी भोजन देना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. प्रीतिपूर्वक पत्नी के साथ घर में आये अन्य मित्र आदि को भी सत्कार पूर्वक शक्ति के अनुसार भोजन करावे ।
टिप्पणी :
‘‘समय पाके गृहस्थ और राजादि भी अतिथिवत् सत्कार करने योग्य हैं ।’’
(सत्यार्थ० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(इतरान् अपि सख्यादीन्) अन्य मित्र आदि को भी (संप्रीत्या गृहं आगतान्) जो प्रेम-पूर्वक घर में आये हुए हों (प्रकृष्टं अन्नं) उत्तम भोजन (यथाशक्ति) अपनी शक्ति के अनुसार (भोजयेत्) खिलावे (सह भार्यया) स्त्री के साथ।
अर्थात् अतिथियों के अतिरिक्त अन्य मित्रादि को भी सत्कार-पूर्वक भोजन कराना चाहिये।