Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
ये (३।१०९-११२) चार श्लोक निम्न लिखित कारणों से प्रक्षिप्त हैं -
(क) ये श्लोक प्रसंग - विरूद्ध हैं । मनु ने ३।१०८ श्लोक में वैश्वदेवयज्ञ के पश्चात् भी किसी अतिथि के आने पर भोजन कराने की बात कहकर अतिथि - समबन्धी सामान्य कथन को पूर्ण कर दिया है और उसके पश्चात् अतिथि के साथ मित्रादि के आने पर, अथवा अतिथि से पूर्व भी किनको भोजन कराया जा सकता है, उनके सम्बन्ध में ३।११३ - ११४ श्लोकों में विशेष - उल्लेख किया गया है । इनके बीच में कौन अतिथि हो सकता है, यह अतिथि की परिभाषा सम्बन्धी वर्णन प्रसंगविरूद्ध है ।
(ख) मनु ने ३।१०२ श्लोक में अतिथि की पूर्ण परिभाषा की है कि जो विद्वान् है और जो अनियततिथि वाला हो, उसको अतिथि कहते हैं । किन्तु यहाँ (३।११० में) क्षत्रियादि का ब्राह्मण के घर अतिथि न होने का कथन और (३।१११ में) क्षत्रिय अतिथि हो तो ब्राह्मणों के खाने पर उसको खिलाये, और (३।११२ में) यदि वैश्य, शूद्र अतिथि रूप में आ जायें, तो उन्हें नौकरों के साथ भोजन खिलाये, इत्यादि बातें मनु की अतिथि - परिभाषा से विरूद्ध हैं । मनु ने जिसके आने की तिथि न हो और विद्वान् हो, उसे ही अतिथि माना है । चाहे वह किसी वर्ण का हो । और मनु के अतिथि सम्बन्धी (३।१०४-१०६) अन्य वचनों से भी ये सब बातें विरूद्ध एवं पक्षपातपूर्ण हैं । और मनु ने ३।१०२-१०३ में अतिथि की परिभाषा कर दी है, पुनः दुबारा यहाँ परिभाषा सम्बन्धी बातें मौलिक न होने से परवर्ती ही सिद्ध होती हैं ।
(ग) इन श्लोकों में पुनरूक्त बातों का भी वर्णन है । जैसे मनु ने ३।११३ में मित्रादि परिचितों को अतिथि से भिन्न माना है । और यहाँ (३।११०) में मित्रादि को अतिथि न मानना पुनरक्त है । अतः पुनरक्त बातें निष्प्रयोजन मन सदृश पुरूष की कदापि नहीं हो सकतीं ।
(घ) मनु ने ३।१०७ श्लोक में स्पष्ट लिखा है कि अतिथि वर्णों के आधार पर नहीं होता । किन्तु घर पर आये अतिथियों की सेवा योग्यता के आधार पर करनी चाहिए । किन्तु यहां वर्णों के आधार पर अतिथि - सेवा मानना और वैश्य को मनु ने द्विजों में माना है, उसका शूद्र के तुल्य सत्कार करनादि बातें मनु की मान्यता से विरूद्ध हैं ।
(ड) मनु ने २।१११-११२ श्लोकों में बडप्पन के आधार सभी वर्णों में पांच्च माने हैं - वित्त, बन्धु, अवस्था, कर्म, विद्या । इनमें भी विद्या को सर्वोपरि माना है । परन्तु यहाँ (३।१०९ में) कुल व गोत्र की बात का जो कथन किया गया है, उससे स्पष्ट है कि ये श्लोक उस समय लिखे गये हैं, जब बडप्पन का आधार कुल तथा गोत्र को माना जाने लगा था ।