Manu Smriti
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गुच्छगुल्मं तु विविधं तथैव तृणजातयः ।बीजकाण्डरुहाण्येव प्रताना वल्ल्य एव च । ।1/48

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गुच्छ* और गुल्म** बहुत प्रकार के होते हैं और तृण कोई तो बीज लगाने से होते हैं, कोई शाखा लगाने से होते हैं जैसे प्रताना बल्ली*** आदि।
टिप्पणी :
*जिनमें जड़ लता से निकलती है और शाखा बड़ी नहीं होती। ** जिनमें जड़ एक है परन्तु रेशे (जड़ के डोरे) बहुत निकलते हैं। *** जिनमें सोत होता है यथा लौकी, कुम्हड़ा आदि।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
विविधम्) अनेक प्रकार के (गुच्छ) जड़ से गुच्छे के रूप में बनने वाले ‘झाड़’ आदि (गुल्मम्) एक जड़ से अनेक भागों में फूटने वाले ‘ईख’ आदि (तथैव) उसी प्रकार (तृणजातयः) घास की सब जातियां, (बीज - काण्डरूहाणि) बीज और शाखा से उत्पन्न होने वाले (प्रतानाः) उगकर फैलने वाली ‘दूब’ आदि (च) और (वल्ल्यः) उगकर किसी का सहारा लेकर चढ़ने वाली बेलें (एव) ये सब स्थावर भी ‘उद्धिज्ज’ कहलाते हैं ।
 
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