Manu Smriti
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एकरात्रं तु निवसन्नतिथिर्ब्राह्मणः स्मृतः ।अनित्यं हि स्थितो यस्मात्तस्मादतिथिरुच्यते 3/102

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
एक रात्रि के रहने वाले को अतिथि (पाहुना) कहते हैं। अतः अतिथि को एक रात्रि से अधिक न रहना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
विद्वान् व्यक्ति जो एक ही रात्रि तक पराये घर में रहे तो उसे अतिथि कहा गया है क्यों कि जिस कारण से वह नित्य नहीं ठहरता है अथवा जिसका आना अनिश्चित होता है इसी कारण से उसे अतिथि कहा जाता है ।
टिप्पणी :
‘‘जिसके आगमन की कोई नियत तिथि न हो और स्थिति भी जिसकी अनियत हो, वह अतिथि कहलाता है । अतिथियज्ञ का अधिकारी वही है, जो विद्वान् हो एवं जिसका आना, जाना और ठहरना अनियत हो, वह चाहे किसी वर्ण का हो उसकी सेवा करना यह एक श्रेष्ठ कर्म है ।’’ (पू० प्र० १४३) टिप्पणी :
श्लोक ९४ से १०८ तक के विषय में सत्यार्थ प्रकाश के चतुर्थ समुल्लास में निम्न प्रकार लिखा है - ‘‘अब पांचवीं अतिथिसेवा - अतिथि उसको कहते हैं कि जिस की कोई तिथि निश्चित न हो अर्थात् अकस्मात् धार्मिक सत्योपदेशक सब के उपकारार्थ सर्वत्र घूमने वाला पूर्ण विद्वान् परमयोगि - संन्यासी गृहस्थ के यहाँ आवे तो उसको प्रथम पाद्य, अर्ध और आचमनादि तीन प्रकार का जल देकर पश्चात् आसन पर सत्कार पूर्वक बिठालकर खान, पान आदि उत्तमोत्तम पदार्थों से सेवासुश्रूषा करके, प्रसन्न करे । पश्चात् सत्संग करे । उनसे ज्ञान विज्ञान आदि जिनसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होवे ऐसे - ऐसे उपदेशों का श्रवण करे और अपना चाल - चलन भी उनके सदुपदेशानुसार रक्खे ।’’ संस्कार विधि गृहाश्रम के अतिथियज्ञ प्रकरण में निम्न प्रकार लिखा है - ‘‘पांचवाँ जो धार्मिक, परोपकारी, सत्योपदेशक पक्षपात रहित, शान्त, सर्वहितकारक विद्वानों की अन्नादि से सेवा उनसे प्रश्नोत्तर आदि कर के विद्या प्राप्त होना ‘‘अतिथियज्ञ’’ कहाता है, उसको नित्य किया करें ।’’ ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका के पंच्चमहायज्ञान्तर्गत अतिथियज्ञ - विधान में निम्न प्रकार लिखा है - ‘‘अब पांचवाँ अतिथियज्ञ अर्थात् जिसमें अतिथियों की यथावत् सेवा करनी होती है, उसको लिखते हैं । जो मनुष्य पूर्ण विद्वान् परोपकारी, जितेन्द्रिय, धर्मात्मा, सत्यवादी, छल कपट रहित और नित्य भ्रमण करके विद्या धर्म का प्रचार और अविद्या अधर्म की निवृत्ति सदा करते रहते हैं, उनको अतिथि कहते हैं । इसमें वेद - मन्त्रों के अनेक प्रमाण हैं । परन्तु उनमें से दो मन्त्र अथर्ववेद काण्ड १५ के लिखे हैं ।’’
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एक रात निवास करने वाला ब्राह्मण अतिथि माना गया है। क्योंकि, यतः उसका टिकना नित्य का नहीं प्रत्युत अनित्य है, अतः वह अतिथि कहलाता है।१
टिप्पणी :
१. अनित्य स्थिति-अ तिथि-अतिथि। अथवा, न विद्यते द्वितीया तिथिरस्येति अतिथिः।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
एक रात रहने वाला ब्राह्मण अतिथि कहलाता है। (अनित्यं हि स्थितः यस्मात् तस्मात् अतिथिः उच्यते) थोड़े काल के लिये रहता है, इसलिये उसे अतिथि कहते हैं।
 
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