Manu Smriti
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शूनां च पतितानां च श्वपचां पापरोगिणाम् ।वयसानां कृमीणां च शनकैर्निर्वपेद्भुवि 3/92

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कुत्ता, पतित, डोम, पाप रोगी, कौआ, कृमि इन सबको धीरे से पृथ्वी में देवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
और कुत्ता, पतित, चांडाल, पापरोगी, काक और कृमी इन छः नामों के छः भाग पृथिवी में धरे । (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
इस प्रकार ‘‘श्वभ्योनमः, पतितेभ्यो नमः, श्वपभ्यो नमः, पापरोगिभ्यो नमः, वायसेभ्यो नमः, कृमिभ्यो नमः, से बलि धर कर पश्चात् किसी दुःखी बुभुक्षित प्राणी अथवा कुत्ते, कौवे आदि को दे देवे । यहां नमः शब्द का अर्थ अन्न अर्थात् कुत्ते, पापी, चाण्डाल, पाप रोगी, कौवे और कृमि अर्थात् चींटी आदि को अन्न देना यह मनुस्मृति आदि की विधि है - (सत्यार्थ० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(३) तत्पश्चात्, कुत्तों, कंगालों, चाण्डालों, कोढ़ी आदि पापरोगियों, कौओं और चिऊंटी आदि कृमियों के भाग धीरे से पृथिवी पर रखे। और वे छः भाग, जिस-जिस के नाम के हैं उस-उस को दे देने चाहियें।१
टिप्पणी :
१. एवं, भूतयज्ञ के तीन भाग हैं। पहला, पाकाग्नि में आहुतियें देना। दूसरा, अतिथि के निमित्त बलि रखना। और तीसरा, छः प्रकार के निकृष्ट प्राणियों के भाग निकालना। बलिहरण करते समय एक पत्तल या थाली में यथोक्त दिशाओं में भाग धरने चाहियें (सं० वि० गृहाश्रम)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(शुनां) कुत्तों को (च पतितानां च) और पतितों को अर्थात् ऐसे पुरुषों को जो किसी घोर अपराध के कारण उच्च समाज से तिरस्कृत कर दिये गये हैं, (श्वपचां च) और चाण्डालों को, (पापरोगिणां) पाप-रोगियों को, (वायसानां कृमीणां च) कौओं और चींटियों को (शनकैः) धीरे से (निर्वपेत् भुवि) भोजन भूमि में रख दें।
 
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