Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वास्तुपृष्ठ (वस्तु की पीठ) में सर्वोत्तम भूत को बलि देवें। बलि देने के पश्चात् जो अन्न बचे उसे दक्षिण दिशा में पितरों को देवें।
टिप्पणी :
श्लोक 88 से 91 तक मिलावट ज्ञात होती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सब प्राणियों के व्याप्त या आश्रयरूप परमात्मा की सत्ता का स्मरण करने के लिए (‘ओं सर्वात्मभूतये नमः’ से) घर के पृष्ठभाग में बलिभाग रखे शेष बलिभाग को माता - पिता, आचार्य, अतिथि, भूत्य आदिकों को सम्मानपूर्वक भोजन कराने की भावना को स्मरण करने के लिए (‘ओं पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः’ इस मन्त्र से) घर के दक्षिण भाग में रखे ।
‘‘सर्वात्मभूतये नमः । इन भागों को जो कोई अतिथि हो तो उसको जिमा देवे अथवा अग्नि में छोडत्र देवे ।’’
(सत्यार्थ० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
‘सर्वात्मभूतये नमः’ से भवन के पीछे की ओर बलि स्थापित करे। और ‘पितृभ्यः (स्वधायिभ्यः स्वधा) नमः’ से सब का सब बलिशेष दक्षिण दिशा की ओर रखे।