Manu Smriti
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विश्वेभ्यश्चैव देवेभ्यो बलिं आकाश उत्क्षिपेत् ।दिवाचरेभ्यो भूतेभ्यो नक्तंचारिभ्य एव च 3/90

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
विश्वदेव निमित्त आकाश में छोड़ दें और रात्रि दिन परिभ्रमण करने वाले भूतों को आकाश में देवें।
टिप्पणी :
श्लोक 88 से 91 तक मिलावट ज्ञात होती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. और संसार के साधक गुणों की प्राप्ति के लिए संसार के संचालक परमात्मा या विद्वानों के दिव्य गुणों के लिए (‘ओं विश्वेभ्यः देवेभ्यः नमः’ से) आकाश की ओर या घर के ऊपर बलिभाग रखे तथा दिन में विचरण करने वाले प्राणियों से सुखप्राप्ति के लिए (‘ओं दिवाचरेभ्यो भूतेभ्यः नमः’ से) और रात्रि में विचरण करने वाले प्राणियों से सुखप्राप्ति की कामना के लिए (‘ओं नक्तंचारिभ्यो भूतेभ्यो नमः’ मन्त्र से) बलि रखे । ‘‘विश्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । दिवाचरेभ्यो भूतभ्यो नमः । नक्तंचारिभ्यो भूतेभ्यो नमः।’’ (सत्यार्थ० चतुर्थसमु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
‘विश्वेभ्यो देवेभ्यो नमः’ तथा दिन को ‘दिवाचरेभ्यो भूतेभ्यो नमः’ किंवा रात्रि को ‘नक्तंचारिभ्यो भूतेभ्यो नमः’ इन दो से आकाश की ओर बलि फैंके।
 
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