Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उत्तम विधि से अग्निहोत्र करके प्रदक्षिणा करने से इन्द्र, वरुण, यम, चन्द्र आदि, और उनके सेवकों को बलिदान देवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. इस प्रकार अच्छी तरह उपुर्यक्त आहुतियां देकर सब दिशाओं में घूमकर परमेश्वर के सहचारी गुणों इन्द्र - सर्व प्रकार के ऐश्वर्य से युक्त होना, अन्तक - यम अर्थात् न्यायकारी होना, या प्राणियों के जन्म - मरण का नियन्त्रण रखने वाला गुण, अप्पति - वरूण अर्थात् सबके द्वारा वरणीय सबसे श्रेष्ठ परमात्मा, इन्द्र - सोम अर्थात् आनन्ददायक होना इनके लिए (क्रमशः ‘ओं सानुगायेन्द्राय नमः’ मन्त्र से पूर्व दिशा में, ‘ओं सानुगाय यमाय नमः’ से दक्षिण दिशा में, ‘ओं सानगाय वरूणाय नमः’ से पश्चिम दिशा में, ‘ओं सानुगाय सोमाय नमः’ से उत्तर दिशा में) भोजन के भाग अर्थात् बलि को रखे ।
‘‘पश्चात् थाली अथवा भूमि में पत्ता रखके पूर्व दिशादि क्रमानुसार यथा क्रम इन मन्त्रों से भाग रखें - ओ३म् सानुगायेन्द्राय नमः सानुगाय यमाय नमः सानुगाय वरूणाय नमः सानुगाय सोमाय नमः ।’’
(सत्यार्थ० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(२) एवं, पक्वान्न हवि की सम्यक्तया आहुतियें देकर तदनन्तर प्रदक्षिणक्रम से पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, और उत्तर दिशाओं में सानुग सहित क्रमशः इंद्र, यम, वरुण और सोम मन्त्रों में बलि रखें।१