Manu Smriti
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कुर्यादहरहः श्राद्धं अन्नाद्येनोदकेन वा ।पयोमूलफलैर्वापि पितृभ्यः प्रीतिं आवहन् 3/82

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अपने बड़ों (वृद्धों, पितरों) से प्रीति रखें और भोजन, दूध, घी, फल आदि से नित्य उनका श्राद्ध किया करें। क्योंकि यह बड़ा यज्ञ है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
गृहस्थ व्यक्ति अन्न आदि भोज्य पदार्थों से और जल तथा दूध से, कन्दमूल, फल आदि से माता - पिता आदि बुजुर्गों से अत्यन्त प्रेम करते हुए प्रतिदिन श्राद्ध - श्रद्धा से किये जाने वाले सेवा - सुश्रूषा, भोजन देना आदि कत्र्तव्य करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
अतः, गृहस्थ को चाहिये कि वह प्रतिदिन माता पितादिकों को संतुष्ट-प्रसन्न करता हुआ, भोजन, शुद्ध जल, वा दूध फल मूल से श्रद्धापूर्वक उनकी सेवा करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(कुर्यात्) करे (अहः अहः) प्रतिदिन (श्राद्धं) श्राद्ध (अन्नाद्येन लदकेन वा) भोजन आदि और जल से (पयः मूल-फलैः वा अपि) दूध, कन्द मूल, फल आदि से (पितृभ्यः प्रीतिम् आवहन्) माता पिता को प्रीति-पूर्वक बुलाकर।
 
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