Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ऋषि, पितर, देवता, अतिथि यह सब गृहस्थों से भोजन का आश रखते हैं। इस हेतु इन सबको अन्न-जल देना चाहिये। क्योंकि वानप्रस्थी और सन्यासी, विद्यादाता, विद्वान इनकी जीविका का द्वार गृहस्थ के अतिरिक्त अन्य नहीं है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ऋषि - मुनि लोग, माता पिता, अग्नि आदि देवता, भृत्य तथा कुष्ठी आदि और अतिथिलोग गृहस्थों से ही आशा रखते हैं अर्थात् सहायता की अपेक्षा रखते हैं अपने गृहस्थ सम्बन्धी कत्र्तव्यों को समझने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह इनके लिए सहायता कार्य करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ऋषि, पितर, देव, जीवजन्तु तथा अतिथि गृहस्थो से कुछ पाने की आशा रखते हैं। इसलिए विद्वान् को चाहिये कि वह उनके लिये पञ्चयज्ञ-कर्म करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
ऋषि, वृद्ध माता पिता, देव, भृत्य आदि अन्य प्राणी, और अतिथि। यह सब कुटुम्बियों अर्थात् गृहस्थ पुरुषों से आशा रखते हैं। इसलिये (कार्य विजानता) ज्ञानी पुरुषों को गृहस्थ धर्म का पालन अवश्य करना चाहिये।