Manu Smriti
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यस्मात्त्रयोऽप्याश्रमिणो ज्ञानेनान्नेन चान्वहम् ।गृहस्थेनैव धार्यन्ते तस्माज्ज्येष्ठाश्रमो गृही 3/78

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद के स्वाध्याय और अन्नदान देने से तीनों आश्रमों को गृहस्थाश्रमी नित्य धारण करता है। इस हेतु गृहस्थाश्रम ही बड़ा है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जिस से ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ और संन्यासी, इन तीन आश्रमियों को अन्न - वस्त्रादि दान से नित्यप्रति गृहस्थ धारण - पोषण करता है इस लिए व्यवहार में गृहाश्रम सबसे बड़ा है । (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
‘‘जिससे गृहस्थ ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ और संन्यासी तीन आश्रमों को दान और अन्नादि देके प्रतिदिन गृहस्थ ही धारण करता है, इससे गृहस्थ ज्येष्ठाश्रम है अर्थात् सब व्यवहारों में धुरंधर कहाता है ।’’ (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यतः, उपर्युक्त तीनों आश्रमियों को गृहस्थ वस्त्रादि-दान व अन्न से नित्यप्रति धारण करता है, इसलिये व्यवहार में गृहाश्रम सब से बड़ा है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यस्मात्) चूंकि (त्रयः अपि आश्रमिणः) ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ तथा सन्यास तीन आश्रम वाले (ज्ञानेन अन्नेन च) दैनिक व्यावहारिक ज्ञान तथा अन्न के द्वारा (अन्वहं) प्रतिदिन (गृहस्थेन एव धार्यन्ते) गृहस्थ के द्वारा ही पाले जाते हैं, (तस्मात् ज्येष्ठ-आश्रमः गृहो) इसलिये गृहस्थ सब आश्रमों में बड़ा है।
 
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