Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस प्रकार वायु के आश्रय से सब जीव जीते हैं उसी प्रकार गृहस्थ आश्रम के आश्रय से सब आश्रय वाले रहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जैसे वायु के आश्रय से सब जीवों का वत्र्तमान सिद्ध होता है (तथा) वैसे ही गृहस्थ के आश्रय से ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ और संन्यासी अर्थात् सब आश्रमों का निर्वाह होता है ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जैसे वायु के आश्रय से सब जीवों की उपस्थिति है, उसी प्रकार गृहस्थ के आश्रय से ब्रह्मचारी वनस्थ तथा संन्यासी, ये सब आश्रमी अपना-अपना निर्वाह करते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यथा वायुं सम् + आश्रित्य वतन्ते सर्वजन्तवः) जैसे सब जीव वायु के आश्रय से जीते हैं। (तथा गृहस्थमाश्रित्य वर्तन्ते सर्वे आश्रमाः) इसी प्रकार गृहस्थ के सहारे सब आश्रम जीते हैं।