Manu Smriti
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अग्नौ प्रास्ताहुतिः सम्यगादित्यं उपतिष्ठते ।आदित्याज्जायते वृष्टिर्वृष्टेरन्नं ततः प्रजाः 3/76

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अग्नि में जो आहुति पड़ती है वह सूर्य के समीप जाती है और सूर्य द्वारा जल बरसता है, जल से अनाज होता है, अनाज से प्रजा उत्पन्न होती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. (वह पालन - पोषण और भला इस प्रकार होता है) अग्नि में अच्छी प्रकार डाली हुई घृत आदि पदार्थों की आहुति सूर्य को प्राप्त होती है - सूर्य की किरणों से वातावरण में मिलकर अपना प्रभाव डालती है, फिर सूर्य से वृष्टि होती है वृष्टि से अन्न पैदा होते हैं उससे प्रजाओं का पालन - पोषण होता है ।
टिप्पणी :
‘‘उससे वायु और वृष्टि - जल की शुद्धि के होने से जगत् का बड़ा उपकार और सुख अवश्य होता है’’ (ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका वेदविषयविचार)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि अग्नि में सम्यक्तया छोड़ी हुई हविष्याहुति आदित्याकर्षण से ऊपर की ओर जाती है, आदित्य से वृष्टि होती है, वृष्टि से अन्न, और उस अन्न से प्रजा। अतः, जो अग्निहोत्र करता है, वह सम्पूर्ण प्रजा का पालन करता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अग्नौ प्रस्ता आहुतिः सम्यक्) अग्नि में उचित रीति से डाली हुई आहुति (आदित्यम् उपतिष्ठते) सूय्र्य को प्राप्त होती है। (आदित्यात् जायते वृष्टिः) सूय्र्य से वृष्टि होती है। (वृष्टेः अन्नम्) वर्षा से अन्न होता है (ततः प्रजा) और उस अन्न से प्रजा होती है। इस प्रकार हवन सब प्राणियों का पोषण करता है।
 
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