Manu Smriti
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स्वाध्याये नित्ययुक्तः स्याद्दैवे चैवेह कर्मणि ।दैवकर्मणि युक्तो हि बिभर्तीदं चराचरम् 3/75

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अनध्याय किये बिना वेद का स्वाध्यायी और अग्निहोत्री ब्राह्मण सारे संसार को अपने उपदेश और सदाचार से वश में कर सकता है जैसा कि शंकराचार्य और स्वामी दयानन्द के उदाहरण से प्रकट है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मनुष्य को चाहिए कि वह पढ़ने - पढ़ाने और संध्योपासन अर्थात् ब्रह्मयज्ञ में नित्य लगा रहे अर्थात् प्रतिदिन अवश्य करे और देवकर्म अर्थात् अग्निहोत्र भी अवश्य करे क्यों कि इस संसार में रहते हुए अग्निहोत्र करने वाला व्यक्ति इस समस्त चेतन और जड़ जगत् का पालन - पोषण और भला करता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
गृहस्थ इस गृहाश्रम में रहता हुआ ब्रह्मयज्ञ और वेदयज्ञ में नित्य युक्त रहे। देवयज्ञ में युक्त रहने से वह इस सम्पूर्ण चराचर का पोषण करता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(स्वाध्याये नित्य युक्तः स्यात्) सदा स्वाध्याय अर्थात् ब्रह्म यज्ञ में लगा रहना चाहिये (दैवे च एव इह कर्मणि) और देव यज्ञ अर्थात् होम में भी। (दैव कर्मणि युक्तः हि विभर्ति इदं चराचरम्) होम करने से मनुष्य चर और अचर सभी का भला कहता है।
 
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