Manu Smriti
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जपोऽहुतो हुतो होमः प्रहुतो भौतिको बलिः ।ब्राह्म्यं हुतं द्विजाग्र्यार्चा प्राशितं पितृतर्पणम् 3/74

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन पाँचों को क्रम से 1-जप, 2-यज्ञ (हवन), 3-भूतबलि, 4-अतिथि-पूजा, और 5-पितृतर्पण कहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
‘अहुत’ ‘जपयज्ञ’ अर्थात् ‘ब्रह्मयज्ञ’ को कहते हैं ‘हुतः’ होम अर्थात् ‘देवयज्ञ’ है ‘प्रहुत’ भूतों के लिए भोजन का भाग रखना अर्थात् ‘भूतयज्ञ’ या ‘बलिवैश्वदेवयज्ञ’ है ‘ब्रह्मयहुत’ विद्वानों की सेवा करना अर्थात् ‘अतिथियज्ञ’ है ‘प्राशित’ माता - पिता आदि का तर्पण - तृप्ति करना ‘पितृ - यज्ञ’ है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उन के मत से ब्रह्मयज्ञ संज्ञक ईश्वर या वेद का उप अहुत है, देवपज्ञ संज्ञक अग्निहोत्र हुत है, भूतयज्ञ संज्ञक भूतबलि प्रहुत है, अतिथियज्ञ संज्ञक श्रेष्ठ द्विजों का सत्कार ब्राह्म हुत है, और पितृयज्ञ संज्ञक माता पिता आदिकों का तर्पण प्राशित है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
अहुत है जप अर्थात् ब्रह्मयज्ञ, हुत है होम या देवयज्ञ, प्रहुत है बलिवैश्वदेव अर्थात् भूतयज्ञ, ब्राह्म-हुत है नरयज्ञ या ब्राह्मणों की पूजा। प्राशित है पितृयज्ञ अर्थात् माता पिता को संतुष्ट रखना।
 
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