Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
पञ्चैतान्यो महाअयज्ञान्न हापयति शक्तितः ।स गृहेऽपि वसन्नित्यं सूनादोषैर्न लिप्यते 3/71

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो कोई सामथ्र्यानुसार इन पाँचों महायज्ञों को करता है वह नित्य ही हिंसा (जीवहत्या) के पाप से मुक्त होता रहता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो इन पाँच महायज्ञों को यथाशक्ति नहीं छोड़ता वह घर में रहता हुआ भी प्रतिदिन चुल्ली आदि में हुए हिंसा के दोषों से लिप्त नहीं होता (यतो हि यज्ञों के पुण्यों से उनका शमन होता रहता है )
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(पंच एतान् यः महायज्ञान्) जो इन पाँच महायज्ञों को (न हापयति शक्तितः) यथाशक्ति नहीं छोड़ता (स गृहे अपि वसन्) वह गृहस्थ होता हुआ भी (नित्यं सूनादोषैः न लिप्यते) कभी हिंसा के दोष में नहीं फँसता।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS