Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन कर्मों के प्रायश्चित के निमित्त नित्य पंचयज्ञ करना चाहिये जिससे जितनी हानि संसार को पहुँची है उतना ही लाभ पहुँच जाये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. क्रम से उन सब हिंसा - दोषों की निवृत्ति या परिशोधन के लिए गृहस्थी लोगों के प्रतिदिन करने के लिए महर्षियों ने पांच महायज्ञों का विधान किया है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तासां क्रमेण सर्वासाम्) क्रम से उन सब के (निष्कृत्यर्थम्) निवारण के लिये (महर्षिभिः) महर्षियों द्वारा (पंच क्लृप्ताः महायज्ञाः) पाँच महायज्ञ बताये गये (प्रत्यहम्) प्रतिदिन करने के लिये (गृहमेधिनाम्) गृहस्थों के।
अर्थात् महर्षियों ने कहा है कि चूल्हा, चक्की, झाड़ू, ओखली और घड़ोंची के प्रयोग से मनुष्य को जो हिंसा का दोष लगता है उसके प्रायश्चित स्वरूप उसको नित्य क्रमशः पाँच महायज्ञ करने चाहिये।