Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
गृहस्थ के घर में चूल्हा, सिल, बट्टा, झाड़ू, ओखली, मूसल, पानी का घड़ा इनसे काम लेने में जीव मरते हैं किन्तु जीव-हत्या की इच्छा न होने से यह हिंसा नहीं कहलाती। परन्तु जीवों को हानि अवश्य पहुँचती है, इस हेतु उसका प्रायश्चित आवश्यक है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
चूल्हा चक्की झाडू ओखली तथा पानी का घड़ा गृहस्थियों के ये पाँच हिंसा के स्थान हैं जिनको प्रयोग में लाते हुए गृहस्थी व्यक्ति हिंसा के पाप से बंध जाता है ।
टिप्पणी :
‘‘प्रश्न - क्या इस होम कराने के बिना पाप होता है ।
उत्तर - हां क्यों कि जिस मनुष्य के शरीर से जितना दुर्गन्ध पैदा हो के वायु और जल को बिगाड़ कर रोगोत्पत्ति का निमित्त होने से प्राणियों को दुःख प्राप्त करता है उतना ही पाप उस मनुष्य को होता है । इसलिये उस पाप के निवारणार्थ उतना सुगन्ध वा उससे अधिक वायु और जल में फैलाना चाहिये ।’’
(सत्यार्थ० तृतीय समु० होमप्रकरण)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(पंच सूना गृहस्थस्य) गृहस्थ पुरुष के पाँच हिंसा के स्थान हैं। (चुल्ली) चूल्हा, (पेषणी) चक्की, (उपस्कर) झाड़ू, (कण्डनी) ओखली, (च) और (उदकुम्भः च) घड़ोंची (बध्यते याः तु वाहयन्) इनका प्रयोग करने से मनुष्य को हिंसा दोष लगने की संभावना है।
अर्थात् प्रत्येक गृहस्थ चूल्हा, चक्की, झाड़ू, ओखली और घड़ोंची का प्रयोग करने में किसी न किसी प्राणी की हिंसा कर देता है।