Manu Smriti
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संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम् 3/60

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस कुल में पति पत्नी परस्पर प्रसन्न रहते हैं वहाँ कलह के न होने से सुख मिलता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
हे गृहस्थो! जिस कुल में भार्या से प्रसन्न पति और पति से भार्या सदा प्रसन्न रहती है उसी कुल में निश्चित कल्याण होता है । और दोनों परस्पर अप्रसन्न रहें तो उस कुल में नित्य कलह वास करता है । (सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
‘‘जिस कुल में भार्या से भत्र्ता और पति से पत्नी अच्छे प्रकार प्रसन्न रहती है, उसी कुल में सब सौभाग्य और ऐश्वर्य निवास करते हैं ।’’ (स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जिस कुल में भार्य्या से भर्ता तथा भर्या से भर्य्या सदा प्रसन्न रहते हैं, उस कुल में निश्चय तौर पर सदा कल्याण रहता है। अतः, जहां परस्पर में अप्रसन्नता हो उस कुल में सदा दौर्भाग्य और दारिद्र्य का निवास होता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सन्तुष्टः भार्यया भत्र्ता) स्त्री से पुरुष संतुष्ट हो (भत्र्रा भार्या तथा एव) उसी प्रकार पुरुष से स्त्री संतुष्ट हो (यस्मिन् एव कुले नित्यम्) जिस कुल में सदा। (कल्याणं तत्र वै ध्रुवम्) उस कुल में अवश्य ही कल्याण होगा।
 
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