Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इस हेतु धनेच्छुक मनुष्यों को चाहिये कि वह अपनी स्त्रियों को आवश्यकता से सन्तुष्ट रक्खें जिससे वे उत्तम सन्तान सुप्रसव करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इस कारण ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले पुरूषों को योग्य है कि इन स्त्रियों को सत्कार के अवसरों और उत्सवों में भूषण, वस्त्र, खान - पान आदि से सदा पूजा अर्थात् सत्कारयुक्त प्रसन्न रखें ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
‘‘इसलिए ऐश्वर्य की कामना करने हारे मनुष्यों को योग्य है कि सत्कार और उत्सव के समय में भूषण, वस्त्र और भोजन आदि से स्त्रियों का नित्यप्रति सत्कार करें ।’’
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसलिये ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले मनुष्यों को चाहिए कि वे सत्कार के अवसरों और उत्सवों में सदा इनका भूषण, वस्त्र तथा खान-पान आदि के सत्कार करें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तस्मात्) इसलिये (एताः सदा पूज्यः) इन स्त्रियों का सदा सत्कार होना चाहिये, (भूषण-आच्छादन + अशनैः) जेवर, वस्त्र और भोजन से (भूतिकामैः नरैः) विभूति के इच्छुक आदमियों द्वारा। (नित्यम्) सदा, (सत्कारेषु उत्सवेषु च) अच्छे कामों और उत्सवों में।