Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
आवश्यकीय सुख और मान न पाकर जिस कुल की स्त्रियाँ शाप दे देती हैं। वह कुल शीघ्र ही नाश हो जाता है क्योंकि वह निर्बल है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिन कुल और घरों में अपूजित अर्थात् सत्कार को न प्राप्त होकर स्त्रीलोग जिन गृहस्थों को शाप देती हैं वे कुल तथा गृहस्थ जैसे विष देकर बहुतों को एक बार नाश कर देवें वैसे चारों ओर से नष्ट - भ्रष्ट हो जाते हैं ।
(सं० वि० अन्नप्राशन सं०)
टिप्पणी :
‘‘जो विवाहित स्त्रियाँ पति, माता, पिता, बन्धु और देवर आदि से दुःखित होके जिन घर वालों को शाप देती हैं, वे जैसे किसी कुटुम्ब भर को विष देके मारने से एक बार सबके सब मर जाते हैं, वैसे उनके पति आदि सब ओर से नष्ट - भ्रष्ट हो जाते हैं ।’’
(ऋ० पत्र वि० ४४४)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जिन घरों में सत्कार को न प्राप्त हुई स्त्रियें उन्हें शाप देती हैं, वे घर जैसे विष देकर बहुतों को एकबार ही नष्ट कर दिया जावे वैसे चारों ओर से नष्ट भ्रष्ट हो जाते हैं। (कृत्या=विषप्रयोग)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(जामयः) स्त्रियाँ (यानि गेहानि) जिन घरों को (शपन्ति) शाप देती हैं (अप्रतिपूजिताः) अनादर पाई हुई (तानि) वे कुल (कृत्या-हतानि इव) विष के मारे जैसे (विनश्यति) नष्ट हो जाते हैं (समन्ततः) सब प्रकार से।