Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस कुल में स्त्रियों को कष्ट होता है वह कुल शीघ्र ही नाश हो जाता है। और जहाँ नारियों को सुख होता है वह कुल सदैव फलता फूलता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस कुल में स्त्रियां अपने - अपने पुरूषों के वेश्यागमन, अत्याचार वा व्यभिचार आदि दोषों से शोकातुर रहती हैं वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है और जिस कुल में स्त्रीजन पुरूषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहती हैं वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है ।
टिप्पणी :
‘‘जिस घर वा कुल में स्त्री लोग शोकातुर होकर दुःख पाती हैं, वह कुल शीघ्र नष्ट - भ्रष्ट हो जाता है और जिस घर वा कुल में स्त्री लोग आनन्द से उत्साह और प्रसन्नता में भरी हुई रहती हैं, वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है ।’’
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जिस कुल में स्त्रियें पुरुषों के वेश्यागमन व व्यभिचारादिं दोषों से शोकातुर रहती हैं, वह कुल शीघ्र नष्ट भ्रष्ट हो जाता है। और जिस कुल में ये स्त्रियें पुरुषों के उत्तमाचरणों से प्रसन्न रहती हैं, वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(शोचन्ति जामयः यत्र) जिस कुल में स्त्रियाँ दुखी रहती हैं (विनश्यति आशु तत् कुलम्) वह कुल शीघ्र नष्ट हो जाता है (न शोचन्ति तु यत्र एताः) जहाँ इनको कष्ट नहीं होता (वर्धते तत् हि सर्वदा) वह कुल सदा उन्नति करता है।