Manu Smriti
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पितृभिर्भ्रातृभिश्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा ।पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणं ईप्सुभिः 3/55

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बहुत कल्याण के इच्छुक पिता, भाई, पति और देवर भूपण (गहने) और वस्त्रों से स्त्री की पूजा करें अर्थात् स्त्री को सन्तुष्ट करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. पिता, भ्राता, पति और देवर को योग्य है कि अपनी कन्या, बहन, स्त्री और भौजाई आदि स्त्रियों की सदा पूजा करें अर्थात् यथायोग्य मधुरभाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रक्खें जिन को कल्याण की इच्छा हो वे स्त्रियों को क्लेश कभी न देवें । (सं० वि० गृहाश्रम)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
बहुत कल्याण की इच्छा रखने वाले पिताओं, भाइयों, पतिओं और देवरों को चाहिये कि वे अपनी इन कन्याओं, बहिनों, पत्नियों और भावजों को सत्कारपूर्वक भूषणादिक से प्रसन्न रखें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(एताः) ये (पितृभिः) पिताओं द्वारा (भ्रातृभिः च) और भाईयों द्वारा स्त्रियां (पतिभिः) पतियों द्वारा (देवरैः तथा) और देवरों द्वारा (पूज्याः) सत्कार के योग्य हैं। (भूषयितव्याः च) और इनको वस्त्र भूषण आदि पहनाना चाहिये (कल्याणम् ईष्सुभिः) कल्याण चाहने वालों द्वारा अर्थात् जो बाप, भाई, पति या देवर अपनी भलाई चाहते हैं। उनको चाहिये कि स्त्रियों का सत्कार करें और वस्त्र, जेवर आदि से उनको संपन्न रक्खें।
 
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