Manu Smriti
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निन्द्यास्वष्टासु चान्यासु स्त्रियो रात्रिषु वर्जयन् ।ब्रह्मचार्येव भवति यत्र तत्राश्रमे वसन् 3/50

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वर्जित आठ रात्रियों में भोग करना परिव्यक्त कर देने से प्रत्येक आश्रम में भी ब्रह्मचारी ही रहता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो पूर्व निन्दित आठ रात्रि कह आये हैं उनमें जो स्त्री का संग छोड देता है वह गृहाश्रम में बसता हुआ भी ब्रचारी ही कहाता है । (सं० वि० गर्भाधान सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
पूर्वप्रतिपादित आठ निन्दित रात्रियों में, और इसी प्रकार रोगी आदि होने की अवस्था में अन्य रात्रियों में जो गृहस्थ स्त्री का संग छोड़ देता है, वह गृहाश्रम में वसता हुआ भी जहां तहां (अर्थात् सर्वत्र) ब्रह्मचारी ही कहाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(निन्द्यासु अष्टासु च अन्यासु) शेष आठ अनुचित (रात्रिषु वर्जयन्) रात्रियों को छोड़कर (स्त्रियः) स्त्रियों के साथ (यत्र तत्र आश्रमे वसन्) चाहे किसी आश्रम में क्यों न हों। (ब्रह्मचारी एव भवति) ब्रह्मचारी ही रहता है।
टिप्पणी :
अर्थात् यदि कोई मनुष्य उचित रात्रियों में ही और उचित रीति से ही स्त्री-समागम करता है तो उसको ब्रह्मचारी ही समझना चाहिये। चाहे वह किसी आश्रम में क्यों न हो।
 
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