Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पुरुष का शुक्र (वीर्य) अधिक (बलवान) होने से विषम रात्रि में भी पुत्र उत्पन्न होता है और स्त्री का रज अधिक होने से समरात्रि में भी कन्या उत्पन्न होती है। यदि स्त्री पुरुष दोनों का शुक्र तथा रज समान हो तो नपुंसक कन्या व पुत्र उत्पन्न होता है। यदि दोनों का शुक्र तथा रज न्यून हो तो गर्भ नहीं ठहरता।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
पुत्र के अधिक वीर्य होने से पुत्र स्त्री का आत्र्तव अधिक होने से कन्या तुल्य होने से नपुंसक पुरूष वा गन्ध्य स्त्री क्षीण और अल्पवीर्य से गर्भ का न रहना वा रहकर गिर जाना होता है ।
(स० वि० गर्भापान सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु पुरुष का अधिक वीर्य होने से अयुग्म रात्रियों में भी पुत्र, और स्त्री का अधिक आर्तव होने से युग्म रात्रियों में भी कन्या, तथा रज वीर्य के तुल्य होने से नपुंसक पुरुष या नपुंसक स्त्री (वन्ध्या) उत्पन्न होती है। तथा रज वीर्य के दूषित या अल्प होने से गर्भ नहीं रहता किंवा रह कर गिर जाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(पुमान् पुंसः अधिके शुक्रे) पुरुष के वीर्य के अधिक होने पर लड़का होता है। (स्त्री भवत्यधिकेस्त्रियाः) और स्त्री के वीर्य अधिक होने से लड़की पैदा होती है। (ममे अपुमान पुंस्त्रियौ वा) बराबर होने पर या तो नपुंसक या एक लड़का और एक लड़की (क्षीणे अल्पे च विपर्ययः) वीर्य के क्षीण होने पर या बहुत कम होने पर उल्टा परिणाम होता है अर्थात् सन्तान उत्पन्न नहीं हो सकती।