Manu Smriti
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युग्मासु पुत्रा जायन्ते स्त्रियोऽयुग्मासु रात्रिषु ।तस्माद्युग्मासु पुत्रार्थी संविशेदार्तवे स्त्रियम् 3/48

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सम्भवतः + सम रात्रि में भोग करने से पुत्र और × विषम रात्रि में भोग करने से कन्या उत्पन्न होती है। इस हेतु पुत्रार्थी (पुत्रोत्पत्ति की इच्छा रखने वाले) सम रात्रि में भोग करें।
टिप्पणी :
+ सम अर्थात् जो दो से विभाजित हो सके यथा छठवीं आठवीं आदि। × विषम जो दो से विभाजित न हो सके यथा पांचवीं, सातवीं इत्यादि।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. युग्म अर्थात् सनसंख्या की रात्रियों - छठी, आठवीं, दसवीं, द्वादशी, चतुर्दशी, षोडशी में समागम करने से पुत्र उत्पन्न होते हैं विषम संख्या वाली अर्थात् पांचवीं, सातवीं, नवमी, पन्द्रहवीं रात्रियों में लड़की उत्पन्न होती है इसलिए पुत्र की इच्छा रखने वाला पुरूष ऋतुकाल में समरात्रियों में स्त्री से समागम करे ।
टिप्पणी :
‘‘जिनको पुत्र की इच्छा हो वे छठी, आठवीं, दसमी, बारहवीं, चैदहवीं, और सोलहवीं, ये छः रात्रि ऋतुदान में उत्तम जानें । परन्तु इनमें भी उत्तर - उत्तर श्रेष्ठ हैं और जिनको कन्या की इच्छा हो वे पांचवीं, सातवीं, नवमीं और पन्द्रहवीं ये चार रात्रि उत्तम समझें । इससे पुत्रार्थी युग्म रात्रियों में ऋतुदान देवे ।’’ (स० वि० गर्भाधान सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
युग्म रात्रियों में पुत्र उत्पन्न होते हैं और अयुग्म रात्रियों में कन्यायें। इसलिए जो पुत्रार्थी हो, वह छठी, आठवीं, दसवीं आदि युग्म रात्रियों में ऋतुकाल में स्त्रीगमन करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(युग्मासु पुत्राः जायन्ते) युग्म अर्थात् छठी, आठवीं रात के समागम से पुत्र उत्पन्न होते हैं। (स्त्रियः अयुग्मासु रात्रिषु) और अयुग्म रात्रियों अर्थात् सातवीं, नवीं रात में समागम से लड़की पैदा होती है। (तस्मात्) इसलिये (युग्मासु पुत्रार्थी संविशेत् आर्तवे स्त्रियम्) पुत्र की इच्छा करने वाला मनुष्य ऋतुकाल की युग्म रात्रियों में स्त्री-समागम करे।
टिप्पणी :
युग्म जोड़े को कहते हैं जिनमें दो का भाग पूरा पूरा जा सके। जैसे 4, 8, 10, 16, 22 अयुग्म वह संख्या है जिसमें दो का भाग पूरा पूरा न जा सके।
 
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