Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इनमें प्रथम की चार, ग्यारहवीं, और तेरहवीं रात्रि दूषित निन्दित हैं, शेष उत्तम हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जैसे प्रथम की चार रात्रि ऋतुदान देने में निन्दित हैं वैसे ग्यारहवीं और तेरहवीं रात्रि भी निन्दित है और बाकी रही दस रात्री , सो ऋतुदान में श्रेष्ठ हैं ।
(सं० वि० गर्भाधान सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उन सोलह रात्रियों में से पहली चार रात्रियें तथा ग्यारहवीं और तेरहवीं रात्रि निन्दित है। शेष दश रात्रियें प्रशस्त हैं।१
टिप्पणी :
१. परन्तु स्मरण रहे कि इन दस रात्रियों में भी पर्व की रात्रियें त्याज्य हैं। सोलह दिनों में एक पूर्णिमा या अमावस्या और दूसरी अष्टमी, एवं दो दिन पड़ेंगे। अतः, कुल आठ रात्रियें निन्दित हैं। रात्रि-गणना इस लिए की है कि दिन में ऋतु-दान का निषेध है (सं० वि० गर्भाधान)।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तासाम्) उनमें (आद्याः चतस्रः तु निन्दिता + एकादशी च या त्रयोदशी च) पहली चार तथा एकादशी और त्रयोदशी दूषित हैं। (शेषाः तु प्रशस्ता दश रात्रयः) शेष दश रात्रियाँ ठीक हैं।
अर्थात् दश रात्रियों में ही स्त्री-समागम करना चाहिये।