Manu Smriti
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ऋतुः स्वाभाविकः स्त्रीणां रात्रयः षोडश स्मृताः ।चतुर्भिरितरैः सार्धं अहोभिः सद्विगर्हितैः 3/46

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ऋतुकाल अर्थात् गर्भधारण करने की स्त्रियों की स्वाभाविक सोलह रात्रि हैं, इनमें से प्रथम चार दूषित व वर्जित हैं शेष बारह रात्रि रहीं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
स्त्रियों का स्वाभाविक ऋतुकाल सोलह रात्रि का है अर्थात् रजोदर्शन दिन से लेके सोलहवें दिन तक ऋतु समय है उनमें से प्रथम की चार रात्रि अर्थात् जिस दिन रजस्वला हो उस दिन से लेके चार दिन निन्दित हैं । (सं० वि० गर्भाधान सं०)
टिप्पणी :
‘‘प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ रात्रि में पुरूष स्त्री का स्पर्श और स्त्री - पुरूष का समबन्ध कभी न करे अर्थात् उस रजस्वला के हाथ का छुआ पानी भी न पीवे, न वह स्त्री कुछ काम करे, किन्तु एकान्त में बैठी रहे । क्यों कि इन चार रात्रियों में समागम करना व्यर्थ और महारोगकारक है ।’’ (सं० वि० गर्भाधान सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
साधुजनों से निन्दित पहले चार दिनों के सहित सोलह दिन तक स्वाभाविक तौर पर स्त्रियों का रजोदर्शन माना गया है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
ऋतुः स्वाभाविकः स्त्रीणां रात्रयः षोडश स्मृताः) स्त्रियों की स्वाभाविक ऋतु रात्रियाँ सोलह हैं। (चतुर्भिः) चार (इतरैः सार्धम्) अन्यों के साथ (अहोभिः) दिनों के साथ (सद् विगर्हितैः) अच्छे पुरुषों से तिरस्कृत। अर्थात् स्त्रियों के स्वाभाविक ऋतुकाल की सोलह रात्रियाँ हैं। इनमें पहली चार दोषयुक्त हैं।
 
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