Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
इतरेषु तु शिष्टेषु नृशंसानृतवादिनः ।जायन्ते दुर्विवाहेषु ब्रह्मधर्मद्विषः सुताः 3/41

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
और शेष चारों विवाहों से उत्पन्न पुत्र घातक होता है मिथ्याभाषी, और ब्रह्मधर्म का शत्रु होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
चार विवाहों से जो बाकी रहे चार - आसुर, गान्धर्व, राक्षस और पैशाच, इन चार दुष्ट विवाहों से उत्पन्न हुए सन्तान निन्दित कर्मकत्र्ता, मिथ्यावादी वेदधर्म के द्वेषी बड़े नीच स्वभाव वाले होते हैं । (सं० वि० विवाह सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
शेष बचे हुए अन्य चार दुष्ट विवाहों (आसुर, गान्धर्व, राक्षस, पैशाच) से उत्पन्न सन्तान निन्दित कर्म-कर्ता, मिथ्यावादी, और वेद तथा धर्म के द्वेषी बड़े नीच स्वभाव वाले होते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(इतरेषु तु शिष्टेषु) अन्य शेष प्रकार के विवाहों से (नृशंस-अनृत-वादिनः) निर्लज्ज और झूठे (जायन्ते) उत्पन्न होते हैं (दुर्विवाहेषु) नीच विवाहों से (ब्रह्म-धर्म-द्विषः सुताः) नास्तिक तथा अधर्मी पुत्र। अर्थात् नीच विवाहों का सन्तान पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS