Manu Smriti
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ब्राह्मादिषु विवाहेषु चतुर्ष्वेवानुपूर्वशः ।ब्रह्मवर्चस्विनः पुत्रा जायन्ते शिष्टसम्मताः 3/39

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्म विवाहादि पूर्व के चारों विवाहों से उत्पन्न पुत्र बड़ा तेजस्वी और शिष्ट (उत्तम पुरुष) मनुष्यों के समान होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ब्राह्म, दैव, आर्ष और प्राजापत्य इन चार विवाहों में पाणिग्रहण किये हुए स्त्री - पुरूषों से जो सन्तान उत्पन्न होते हैं वे वेदादिविद्या से तेजस्वी, आप्त पुरूषों के संगत अत्युत्तम होते हैं । (सं० वि० विवाह सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ब्राह्म, दैव, आर्ष और प्राजापत्य, इन चार विवाहों में पाणिग्रहण किये हुए स्त्रीपुरुष से जो सन्तान उत्पन्न होते हैं, वे वेदादि विद्या से तेजस्वी और आप्त पुरुषों के समस्त अत्युत्म होते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(ब्राह्म + आदिषु विवाहेषु चतुर्षु एव अनुपूर्वशः) ब्राह्म आदि चार विवाहों में ही क्रमशः (ब्रह्मवर्चस्विनः पुत्रा जायन्ते शिष्टसंमताः) ब्रह्मतेज वाले और श्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न होते हैं।
 
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