Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सोती स्त्री, धन वा भोग मद से ¬¬प्रमत्त (मस्नी, रोगिणी वा अज्ञान हो) ऐसी स्त्री से एकान्त में सहवास करना पिशाच विवाह कहलाता है। यह आठवाँ विवाह और सबसे अधम है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जो सोती, पागल हुई वा नशा पीकर उन्मत्त हुई कन्या को एकान्त पाकर दूषित कर देना यह सब विवाहों में नीच से नीच - महानीच, दुष्ट अतिदुष्ट, ‘पैशाच विवाह’ है ।
(सं० वि० विवाह सं०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(८) सोती हुई, पागल हुई व नशा पीकर उन्मत हुई कन्यां को एकान्त में पाकर जो दूषित करता है, वह पापिष्ठ है। और विवाह में यह आठवां पैशाच विवाह अधमाधम है।१
टिप्पणी :
१. इसलिए यही निश्चय रखना चाहिये कि कन्या और वर का विवाह के पूर्व एकान्त में मेल न होना चाहिये, क्योंकि युवावस्था में स्त्री पुरुष का एकान्तवास दूषणाकारक है। परन्तु जब कन्या वा वर के विवाह का समय हो, अर्थात् जब एक वर्ष वा छः महीने ब्रह्मचर्य्याश्रम और विद्या पूरी होने में शेष रहें, तब उन कन्या और कुमारों का प्रतिबिम्ब, अर्थात् जिसको ‘‘फोटोग्राफ़’’ अथवा प्रतिकृति कहते हैं, उतार के कन्याओं की अध्यापिकाओं के पास कुमारों की, कुमारों के अध्यापकों के पास कन्याओं की प्रतिकृति भेज देवें। जिस-जिस का रूप मिल जाये, उस-उस के इतिहास, अर्थात् जन्म से लेके उस दिन पर्यन्त के जन्मचरित्र, का जो पुस्तक हो उसको अध्यापक लोग मंगवा के देखें। जब दोनों के गुण कर्म स्वभाव सद्श हों तब जिस-जिस के साथ जिस-जिस का विवाह होना योग्य समझें उस-उस पुरुष और कन्या का प्रतिबिम्ब और इतिहास कन्या और वर के हाथ में देवें और कहें कि इसमें जो तुम्हारा अभिप्राय हो सो हम को विदित कर देना। जब उन दोनों का निश्चय परस्पर विवाह करने का हो जाये, तब उन दोनों का निश्चय परस्पर विवाह करने का हो जाये, तब उन दोनों का समावर्तन एक ही समय में होवे। यदि वे देानों अध्यापकों के सामने विवाह करना चाहें तो वहां, नहीं तो कन्या के माता-पिता के घर में विवाह होना योग्य है। यदि वे समक्ष हों तब उन अध्यापकों का कन्या के माता-पिता आदि भद्रपुरुषों के सामने उन दोनों की आपसी बातचीत, शास्त्रार्थ कराना। और जो कुछ गुप्त व्यवहार पूछें सो भी सभा में लिखके एक दूसरे के हाथ में देकर प्रश्नोत्तर कर लेवें। जब दोनों का द्ढ़ प्रेम विवाह करने में हो जाये तब से उनके खान पान का उत्तम प्रबन्ध होना चाहिये कि जिससे उनका शरीर, जो पूर्व ब्रह्मचर्य और विद्याध्ययनरूपी तपश्चर्या और कष्ट से दुर्बल होता है वह, चन्द्रमा की कला के समान बढ़ के थोड़े ही दिनों में पुष्ट हो जाये। (स० स० ४)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(सुप्ताम्) सोती हुई को (मत्ताम्) नशा पिये हुई (वा प्रमत्ताम्) या पागल के साथ (रहः यत्र उपगच्छति) अकेले में जो मैथुन करता है, (स पापिष्ठः विवाहनाम्) वह विवाहों में सब से गिरा हुआ (पैशाचः च अष्टमः अधमः) यह आठवाँ सब से निकृष्ट पैशाच विवाह है।